Firoz Khan – (Article First Appeared in Hindi Abroad)
भारत के दक्षिण के चार राज्यों को छोड़ दें तो पुरे भारत में शिक्षा का स्तर पिछले कई सालों से गिरता ही चला जा रहा है. किसी को कोई चिंता नहीं है. देश और राज्योंके बजट का यदि अध्ययन करें तो पता चलता है की सरकारें, चाहे किसी की भी हो, टोटल बजट का बहुत ही कम हिस्सा शिक्षा पर खर्च करती हैं. इसी से पता चलता है कि सरकारें इस विषय में कितनी गंभीर हैं. पश्चिम, उत्तर और मध्य भारत कि हालत तो एकदम खस्ता है. और क्यों न हो? कई राज्य हैं जिस में शिक्षा मंत्री केवल ८वी पास हैं. ऐसा व्यक्ति शिक्षाका महत्व क्या समझेगा?
गुजरातमे १०वी का रिज़ल्ट आया. गुजराती भाषा में ही करीब २ लाख छात्र, छात्राएं फ़ैल हुए. मेथ्स में पांच लाख फेल हुए. वहां का शिक्षामंत्री कितना पढ़ा लिखा है मत पूछिए. पिछले चुनावों में हुई इन की जीत को कोर्टने निरस्त कर दिया है. भाई साहब, ऊपरी अदालत में जा कर स्थगन आर्डर ले आये.
भारत की शिक्षा का यह हाल है कि विश्व में १०० विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी नहीं है. कोई आश्चर्य की बात नहीं है. हो भी कैसे? हमारे सांसद और विधायकों को अपनी तनख्वाह और भत्ते वढाने की सदा चिंता सताती रहती है. भारत में २०१४ के बाद कितनी सरकारी कॉलेजें खुली मुझे पता नहीं है. अरे साहब, कॉलेजें और विश्वविद्यालय जाने दीजिये कितनी नई सरकारी स्कूलें खुली? हाँ, निजी स्कूलें बहुत खुल गईं. शिक्षाका व्यापारीकरण जोरों से चल रहा है.
शिक्षक और शिक्षिकाओंकी हालत न पूछिए. मैं सरकारी स्कूलोंकी बात कर रहा हूँ. उन को मैंने पियून से ले कर क्लर्क का काम करते देखा है. चुनाव हो यह हाजिर हैं. जान संख्या गिननेका कामो तो यह हाजिर. अब तो सुना है हाइवे पर चुंगी वसूलने के काम पर भी इन्हें लगाया जा रहा है! ऐसे ही तो हम ‘विश्व गुरु’ बननेवाले हैं.
आज से कुछ साल पूर्व मैंने मुंबई और मुंबई के बाहर की कुछ स्कूलों का दौरा कर बहुत करीब से देखा था. एक स्कूल में एक क्लास में शिक्षक नहीं थे. उम्र में बड़ा एक लड़का जो मॉनिटर था शोर करनेवाले बच्चों को खामोश करा रहा था. मैंने अंदर जा कर उस बच्चे से पूछा की उनके टीचर कहाँ है? वह बच्चा मुझे ले कर लॉबी में आया और दूर एक पेड़ के पास बड़े से पथ्थर पे बैठे एक व्यक्ति की और इशारा करते हुए कहा कि वह उन के टीचर है. मैनेजमेंटवालों ने उन को बुलाया और पूछा कि बच्चों को पढ़ाने के समय वे वहां क्या कर रहे थे? उन्होंने कहा कि वह साईकिल का पंक्चर ठीक करा रहे थे.
एक और स्कूल में मैंने दो क्लास के बीच एक शिक्षक को देखा. कभी वह इस क्लास मजाता तो कभी बगलवाली दूसरी में. कुछ देर तक देखता रहा. उन से पूछा कि वह किस क्लास के टीचर हैं तो बताया कि मैं इस क्लास का हूँ. जब पूछा कि दूसरी क्लास के टीचर कहाँ है तो जवाब मिला कि वह एक महीने कि छुट्टी पर गए हैं. संचालकों से पूछा तो कहा कि सरकार एक महीने के लिए किसी टीचर को रखने के लिए पैसे नहीं देती!!
पिछले दस सालों से छप रही है स्कूली शिक्षा के हालात पर एक रिपोर्ट (Annual Status of Education) ! हर बार यही बताती है यह रिपोर्ट कि
• पांचवीं कक्षा का कोई कोई बच्चा तो अपना नाम भी नहीं लिख पाता !
• स्कूल में शिक्षक नहीं हैं, अगर हैं भी तो आते नहीं, आते भी हैं तो खाली हाजरी रजिस्टर में हाजिरी लगा कर घर रवाना हो जाते हैं अपनी खेती बाड़ी का काम देखने या प्राइवेट अंग्रेज़ी स्कूल चलाने के लिए !
• स्कूल हैं, लेकिन एक ही कमरे में दो-दो, तीन-तीन कक्षाएं भी चलती हैं !
• पांचवीं कक्षा का बच्चा दूसरी कक्षा की किताब भी नहीं पढ़ पाता ! आठवीं कक्षा का बच्चा जोड़ करना, घटाना और भाग करना भी नहीं जानता !
इस साल की रिपोर्ट भी यही सब दोहराते हुए कहती है कि तीसरी कक्षा के 42.3 फीसदी बच्चे ही पहली कक्षा की सामग्री पढ़ पाते हैं, आठवीं कक्षा के 73.1 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा की सामग्री पढ़ पाते हैं और तीसरी कक्षा के 27.7 फीसदी बच्चे ही दो अंकों को घटा सकते हैं ! पांचवी कक्षा के 26 फीसदी बच्चे ही सामान्य भाग का सवाल हल कर सकते हैं !
और हम फिर भी दावा करते हैं विश्वगुरू होने का !!!
Firoz Khan
Firoz Khan is Canada based citizen of Indian origin who writes in Hindi in several news magazines and news papers in Canada for the Indian Community