By Ajay Rohilla.
सुबह देखा कि एक आदमी अपनी महंगी टेक्सी की डिक्की में सब्जियां रख बेच रहा था ।
उससे पूछा कि कितने की है ये गाड़ी ? उसने बताया बारह लाख की ।
मैनें पूछा कितने का धंधा हो जाता है इन सब्जियों को बेच कर ?
कहा उसने ,बस इसकी किस्त निकल जाती है किसी तरह ।
और पहले कितना कमा लेते थे इस टेक्सी से ?
लगभग अस्सी हजार महीना ।
थोड़ा दिमाग पर ज़ोर डाला तो ध्यान आया कि ये अकेला नहीं जिसने इस प्रकार के अपने रोजगार को बदलने वाला ।
पास की लॉन्ड्री वाला भी सब्जियां बेच रहा है और ब्यूटीपार्लर वाली भी।
करोडों लोगों की नोकरियाँ जा चुकी हैं ,खबर आई थी कि रेलवे कर्मचारियों की पेंशन देने के पैसे नहीं बचे सरकार के पास ।
एयर इंडिया के हज़ारों कमर्चारियों को बिना वेतन पांच साल की छुट्टी पर भेज दिया गया है ।
अध्यापकों की सेलरी नहीं मिल रही ।
नई नोकरियाँ नहीं हैं ।
हज़ारों प्राइवेट कारखाने ,दुकानें ,फैक्ट्रियां बन्द ।
छोटे – मोटे काम जैसे चाय – पान -सिगरेट की दुकाने बन्द ।
घरों में काम करने वाली बाइयों का आना बंद ।
अर्थव्यवस्था टूटने की कगार पर ।
बैंकों से जिन पूंजीपतियों ने पैसा ले लिया वो वापस देने को तैयार नहीं ।
छोटे – मोटे कॉपरेटिव बैंक बिना किसी प्रकार की पूर्व – सूचना के बन्द ।
हज़ारों जमाकर्ताओं का पैसा डूब जाता है पर कहीं कोई सुनवाई नहीं ।
क्या हम धीरे -धीरे मंदी के दौर में जा रहें हैं ?
या फिर इन हालातों को सुधारने के लिए सरकारें कुछ प्रयास कर रहीं हैं ? जिनकी जानकारी जनता को नहीं ।
पर मीडिया से जो जानकारी मिलती है वो तो सिर्फ पाकितान ,चीन ,राम मंदिर ,धारा 370 ,तीन तलाक ,राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर अभी कुछ समय पहले तक कोरोना के मरीजों की लगातार बढ़ती संख्या,लॉकडाउन 1-2- 3 ,अनलॉक 1- 2-3और विश्वगुरु हम ।
पर सवाल ये कि क्या हम आने वाले भयावह आर्थिक संकट को देख पा रहें हैं ?
अगर हाँ ,तो क्या उपाय कर रहें हैं हम उसके लिए ?
या फिर सब मज़ा में छे
सब चंगा सी मान लें
माफ कीजिये मैं बड़े -बड़े आँकड़ों नहीं जानता
बस जीवन जानता हूँ अपने आस -पास का
और वो फिलहाल सही दिशा में जाता नहीं लग रहा
ना कोरोना की दिशा में ना आर्थिक दिशा में